अनुशासन का महत्त्व -शिक्षाप्रद कहानी

अनुशासन का महत्त्व 

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           एक बार की बात है अजय नाम का बालक शिक्षा प्राप्त हेतु गुरुकुल रहता था | गुरुकुल में रहते हुए अजय को 4 साल होने वाले थे, लेकिन अभी तक वह अनुशासन में रहना नहीं सीखा था। वह  शरीर से हृष्ट-पुष्ट था और उसका दिमाग भी बहुत तेज था। परेशानी थी तो बस इसी चीज की कि उसके जीवन में कोई लक्ष्य नहीं था और इस कारण वह अपनी शक्ति गलत कार्यों  और शैतानियों में व्यर्थ कर देता था।

        हर रोज नई तरह की शैतानियाँ वो अक्सर ही करता रहता था | एक बार तो वो एक सोते हुए सहपाठी को उठा कर गुरुकुल के बहार छोड़ आया था और सुबह उसके गुम होने से चारों तरफ हाहाकार मच गया था। जब गुरूजी  को अजय की इस उद्दंडता के बारे में पता चला तो गुरुदेव उस पर बहुत क्रोधित हुए।

         गुरु जी द्वारा उसे समझाने के सभी प्रयास विफल हो चुके थे। पानी सर के ऊपर हो चुका था। अंततः एक योजना बनायीं गयी और अजय को एक कार्य सौंपा गया। कार्य था गुरुकुल के पास से बहने वाली नदी का रास्ता रोकना। यूँ तो यह कार्य इतना आसान न था। परन्तु अजय का मानना था कि ऐसा कोई कार्य  नहीं जो वो कर नहीं सकता।

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        अजय ने अगली सुबह अपना कार्य  शुरू किया। पहले उसने छोटे-छोटे पत्थर रखने शुरू किये। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि नदी छोटे पत्थरों को गिरा कर अपना रास्ता बना रही है। इसके बाद उसने बड़े-बड़े पत्थरों से नदी का रास्ता रोक दिया । दोपहर बाद जब उसने नदी का बहाव रोक दिया तो प्रसन्नता पूर्वक गुरुकुल चला गया और सबको बड़े गर्व से बताने लगा। गुरु ने अजय की तरफ देखा तो सही लेकिन कुछ कहा नहीं।

        अजय थकावट के कारण  जल्दी सो गया। सुबह हुई  तो अजय के कानों में शोर सा सुनाई दिया। आवाजें सुनते ही उसने आँखें खोलीं। लेकिन उसे साफ़-साफ़ कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। फिर उसे कुछ गीलेपन का आभास हुआ। उसने अपने चारों तरफ देखा तो पानी उसके कमरे में फैला हुआ था। वो एक दम से उठा और बहार जाकर देखा तो पूरे गुरुकुल में पानी फैला हुआ था।

        गुरूजी ने कहा-“अजय तुमने नदी का बहाव तो रोक दिया लेकिन अब वही पानी हम सबके लिए चिंता का विषय बन गया है। शीघ्र ही इसका कोई निवारण करो, और हाँ स्मरण रहे नदी का बहाव भी रुक जाना चाहिए।” और ऐसा कहते हुए  गुरुजी अपने कक्ष में चले गए।

        अजय उस दिन  बिना कुछ खाए पिए ही गुरुकुल से बाहर चला गया और दिन-रात एक कर उसने पत्थरों का ढेर सारा अंबार लगा नदी का बहाव रोक दिया और दूसरी सुबह वापस आ गया। गुरुकुल में सभी को आदेश था कि कोई भी अजय की किसी भी प्रकार से सहायता नहीं करेगा।

        इस बार पानी गुरुकुल में तो नहीं आया लेकिन पास के गाँव में चला गया और इतना पानी चला गया कि अगर जल्द ही उसको रास्ता न दिया जाता तो पूरा गाँव बाढ़ की चपेट में आ सकता था।

        अगली सुबह कुछ गाँव वाले आये और गुरु जी से आग्रह करने लगे कि उनके गाँव को डूबने से बचाएं। गुरु जी ने अजय को बुलाया और कहा, “मैंने तुम्हें नदी के बहाव को रोकने के लिए कहा था परन्तु तुम्हारी मूर्खता के कारण उस नदी का जल पहले गुरुकुल में आया और अब पूरे गाँव को डुबाने वाला है।”

        अपना पक्ष रखते हुए अजय ने कहा-“परन्तु गुरु जी मैंने तो आपकी आज्ञा का पालन ही किया!”तब गुरूजी ने कहा-“मैंने जल का बहाव रोकने के लिए कहा था। यदि बहाव रुका होता तो गाँव के डूबने की स्थिति क्यों आती? बहाव रोकने का अर्थ है कि जल कहीं नहीं जाना चाहिए।”

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        अजय ने कहा- ऐसा कैसे संभव है गुरुदेव? जल की धारा को कैसे रोका जा सकता है? उसकी शक्ति के आगे हमारी शक्ति तो कुछ भी नहीं। तब गुरूजी ने कहा- क्यों नहीं? पहले तुमने ही उसे रोका वो भी एक बार नहीं दो बार।

        अजय को गुरु जी की इस बात से उनकी मंशा का पता चल गया। वो समझ गया कि नदी के बहाव को नहीं रोका जा सकता था फिर भी उसे जानबूझ कर दो बार भेजा गया। परन्तु उसे ये समझ नही आया कि ऐसा किया क्यों गया। अब वो सबके सामने लज्जित था।

        तभी गुरुदेव उसके पास आये और कहने लगे, “हमारा जीवन भी नदी की धारा की तरह है। नदी की तरह हमारे अन्दर भी अपार शक्ति है। यदि हम नदी की तरह अनुशासन में रह कर आगे बढ़ते रहेंगे तो अपने लक्ष्य को जरूर प्राप्त कर लेंगे। परन्तु यदि हम दिशा हीन हो गए। तो हम दूसरों के लिए हानिकारक भी हो सकते हैं। फिर सब हमसे दूर भागेंगे और हमसे मुक्ति का उपाय सोचेंगे। अंतर सिर्फ इतना है कि नदी सोच नहीं सकती और हम सोच सकते हैं। इसलिए निर्णय लेना तुम्हारे हाथ में है तुम अनुशासन में रहना चाहते हो या फिर दिशाहीन होकर अपना जीवन व्यर्थ करना चाहते हो।”

        इतना कह कर गुरुदेव तो चले गए लेकिन गुरु की ये बातें सुन अजय को अपने अन्दर एक अजीब सी घुटन महसूस होने लगी। उसे समझ आ गया था कि वह अपने जीवन रुपी नदी की धारा में दिशाहीन होने के साथ-साथ अनुशासन हीन भी हो गया था। अपनी इस भूल को सुधारने के लिए वो सीधा नदी के तट पर गया और उस रूकावट को हटा दिया इसके साथ ही अपने जीवन से भी अनुशासनहीनता रुपी रूकावट को हमेशा के लिए निकाल दिया।

कहानी से सीख :-  हमारे जीवन में हम कई बार अपने लक्ष्य की ओर ध्यान नहीं देते और अनुशासनहीन हो जाते हैं। इस से हम दूसरों को नाकारा लगने लगते हैं। अनुशासन में रह कर ही हम अपने आप को काबिल बना सकते हैं।

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