ज़िंदगी एक पाठशाला है

ज़िंदगी एक पाठशाला है 

Zindgi-ek-pathshala-hai


एक बार गाँव के दो मित्रों  ने शहर जाकर धन  कमाने का निश्चय कर  लिया । शहर जाकर कुछ दिन  इधर-उधर छोटा-मोटा काम कर दोनों ने कुछ पैसे जमा किये । फिर उन पैसों से अपना-अपना व्यवसाय प्रारंभ किया । दोनों का व्यवसाय चल पड़ा । दो साल में ही दोनों ने अच्छी  कामयाबी हासिल  कर ली ।




व्यवसाय को फलता-फूलता देख पहले मित्र  ने सोचा कि अब तो मेरा  काम चल पड़ा है । अब तो मैं तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाऊंगा । लेकिन उसकी सोच के विपरीत व्यापारिक उतार-चढ़ाव के कारण उसे उस वर्ष  अत्यधिक नुक़सान  हुआ ।




अब तक आसमान में उड़ रहा वह मित्र  यथार्थ के धरातल पर आ गिरा । वह उन कारणों को तलाशने लगा, जिनकी वजह से उसका व्यापार बाज़ार की मार नहीं सह पाया । सबसे पहले उसने अपने उस  मित्र  के व्यवसाय की स्थिति का पता लगाया, जिसने उसके साथ ही व्यापार आरंभ किया था । वह यह जानकर हैरान रह गया कि इस उतार-चढ़ाव और मंदी के दौर में भी उसका व्यवसाय मुनाफ़े में है । उसने तुरंत उसके पास जाकर इसका कारण जानने का निर्णय लिया ।




अगले ही दिन वह दूसरे मित्र  के पास पहुँचा । दूसरे मित्र  ने उसका खूब आदर-सत्कार किया और उसके आने का कारण पूछा । तब पहला मित्र  बोला,  दोस्त! इस वर्ष मेरा व्यवसाय बाज़ार की मार नहीं झेल पाया । बहुत घाटा झेलना पड़ा । तुम भी तो इसी व्यवसाय में हो ।तुमने  ऐसा क्या किया कि इस उतार-चढ़ाव के दौर में भी तुमने मुनाफ़ा कमाया  ? 




यह बात सुनकर  दूसरा मित्र  बोला, “भाई! मैं तो बस सीखता जा रहा हूँ, अपनी गलती से भी और साथ ही दूसरों की गलतियों से भी । जो समस्या सामने आती है, उसमें से भी सीख लेता हूँ । इसलिए जब दोबारा वैसी समस्या सामने आती है, तो उसका सामना अच्छे से कर पाता हूँ और उसके कारण मुझे नुकसान नहीं उठाना पड़ता । बस ये सीखने की प्रवृत्ति ही है, जो मुझे जीवन में आगे बढ़ाती जा रही है ।”




दूसरे मित्र  की बात सुनकर पहले मित्र  को अपनी गलती  का अहसास हुआ । सफ़लता के मद में वो अति-आत्मविश्वास से भर उठा था और सीखना छोड़ दिया था । तब उसने यह कसम खाई  कि अब कभी सीखना नहीं छोड़ेगा । उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और कामयाबी  की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया ।




कहानी से सीख :-


ज़िंदगी में कामयाब होना है, तो ज़िंदगी को एक  पाठशाला मान हर पल सीखते रहिये । यहाँ नित नए परिवर्तन और नए विकास होते रहते हैं । यदि हम स्वयं को सर्वज्ञाता समझने की भूल करेंगे, तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जायेंगे । क्योंकि इस दौड़ में जीतता वही है, जो लगातार दौड़ता रहता है । जिसें दौड़ना छोड़ दिया, उसकी हार निश्चित है । 

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