पेड़ की रानी -हिंदी शिक्षाप्रद कहानी

पुराने समय में किसी गाँव में एक बूढ़ा आदमी रहता था। उसके विवाह को 20 साल हो गए थे परन्तु वह संतान सुख से वंचित था। भगवान की कृपा से बूढ़े की पत्नी गर्भवती हो गई । अब उसे नई-नई चीज़ें खाने को मन करता था। बूढ़ा भी अपने सामर्थ अनुसार उसे खाने की चीज़ें ला कर देता था।
एक दिन बूढ़े की पत्नी को खट्टे-मीठे बेर खाने की बहुत इच्छा हुई। गरमी के मौसम में बेर कहाँ मिलते हैं। फिर भी बूढ़ा बेरों की तलाश में जंगलों में भटकता रहा । एक दिन जंगलों में इधर-उधर बेर तलाश करते हुए वह एक तालाब के किनारे पहुँचा तो एक बेर की झाड़ी नज़र आई। बूढ़े को बहुत खुशी हुई। वह अपने दोनों हाथों से बेर इकट्ठे करने लगा। अभी झोली भर बेर ही तोड़े थे कि एक आदमख़ोर मगरमच्छ ने अपना बड़ा सा मुँह पानी से ऊपर निकाला और ज़ोर से साँस खींची। उसके साँस लेने से एक ज़ोरदार आँधी चली और बूढ़ा कमज़ोरी की वजह से अपने को न संभाल पाया और तालाब में आ गिरा। बूढ़ा अपने को संभालते हुए किनारे तक पहुँचना ही चाहता था कि मगरमच्छ ने उसके पाँव ही पकड़कर खींच लिए।
बूढ़ा उससे कहने लगा,‘‘भाई खट्टे-मीठे बेरों की तलाश में मेरे पाँव घिस गए और फिर जब बेर मिले तो मेरे रास्ते में तू रोड़ा बनता है।’’ मगरमच्छ ने कहा-‘‘तेरी यह मक्कारी मुझ पर कोई असर नहीं करेगी, बहुत दिनों से इंसान का मांस खाने को नहीं मिला। तेरी करारी ह़ड्डियों को चबाने में मुझे बहुत मज़ा आएगा। आज मैं तुझे खाऊँगा।’’ बूढ़े ने कहा -‘‘क्यों। मुझे तू क्यों खाएगा’’ मगरमच्छ ने कहा -‘‘क्योंकि तूने मुझसे बगैर पूँछे लिए मेरे बेर तोड़ लिए हैं।’’
बूढ़े ने कहा- भाई मैं यह बेर बहुत मजबूरी में ले रहा हूँ। मेरी पत्नी की हालत कुछ ऐसी है। मैं और मेरी पत्नी अब और ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकते।’’ बूढ़े की बात सुनकर मगरमच्छ समझ गया। ओह अगर यह बात है तो मैं तुझे नहीं खाऊँगा। तू अपनी राह ले लेकिन मेरी एक शर्त है। ‘‘क्या शर्त’’ है। बूढे़ ने पूछा। अगर लड़का होगा तो तेरा और लड़की हुई तो मेरी। ‘‘मंजूर है’’ कहकर वह बेरों की झोली संभालते हुए चल दिया। वह अपने मन में सोचने लगा कि मगरमच्छ उसे फिर कहाँ मिलेगा और अगर उसके यहाँ लड़का पैदा हुआ तो फिर तो परेशानी की कोई बात ही नहीं।
बूढ़ा अपनी पत्नी की आव भगत में कोई कमी नहीं करता था। समय बीता और एक दिन बूढ़े के घर एक सुन्दर लड़की ने जन्म लिया । बच्ची को देखकर उसे मगरमच्छ की बात याद आई तो वह काँप उठा। लड़की का रंग गुलाब के फूल की तरह था। उसकी आँखे हीरों की तरह चमकदार थीं। वह परियों की तरह सुन्दर और मासूम थी। ऐसी मन्नतों और मुरादों की लड़की मगरमच्छ के पेट में जाए यह सोचकर बूढ़ा दुख से काँपने लगा। उसने सोचा कि अब वह कभी तालाब के किनारे नहीं जाएगा।
वर्षा का मौसम आया और नदी में बाढ़ आ गई। मगरमच्छ पानी में बह कर तालाब से निकल कर खेत में आ गया। अब उसे आसानी से शिकार मिलने लगा। एक दिन बूढ़ा खेत से सब्ज़ी तोड़कर ला रहा था तो रास्ते में मगरमच्छ ने उसे रोककर सवाल किया। तू मुझसे छिपता क्यों है? तू मुझसे छिप कर कहाँ भागेगा। सीधी तरह बता तेरे यहाँ लड़की हुई या लड़का।’’ बूढ़े ने सहमी हुई आवाज़ में कहा- ‘‘लड़की हुई है।’’
मगरमच्छ ने कहा- ‘‘तो फिर वह मेरी है। मेरी अमानत को अब तक तूने अपने पास क्यों रखा है।’’ बूढ़े ने कहा-इतनी छोटी बच्ची को तुझे कैसे दे दूँ ? मगरमच्छ ने कहा-‘‘चौदह साल पहले तूने मुझसे वादा किया था। क्या वह अब भी बच्ची है। तू पिता की नज़र से देखता है वह अगर बूढ़ी भी हो जाएगी तब भी वह बच्ची ही रहेगी। तू मुझे अब और मूर्ख नहीं बना सकता। मैं तुझे सुख से रहने नहीं दूंगा। देख अगर तूने लड़की को कल ही लाकर मुझे नहीं दिया तो मैं तुम तीनों को एक-एक कर समाप्त कर दूँगा।’’
यह सुनकर बूढ़े ने सवाल किया ‘‘वह मेरी बेटी है। अपना खून तुझे मैं कैसे दे दूँ? लोग क्या कहेंगे?’’ लोग क्या कहेंगे वह मैं नहीं जानता। तू क्या कहता है? शर्त से मुकरना चाहता है? मगरमच्छ ने गुस्से से चिल्लाकर कहा।
बूढ़े ने कहा -नहीं नहीं यह बात नहीं है। मै चाहता हूँ कि मेरी बेटी को इस बात का पता न चले और बूढ़ा कहते-कहते रुक गया। ‘‘तू क्या चाहता है बोल।’’ मगरमच्छ ने कहा।
बूढ़े ने कहा- ‘‘मेरी लड़की को कमल का फूल बहुत पसंद है। तू अपनी पीठ पर एक कमल का फूल रखकर तालाब के अंदर पानी के नीचे बैठे रहना। जब लड़की खुशी से इसे लेने जाएगी तो इसे तू ले जाना।’’ मगरमच्छ को यह तरकीब पसंद आई।
दूसरे दिन जब बूढ़े ने अपनी पत्नी को बताया तो लड़की की माँ परेशान हो गई। वह अपने आपको कोस रही थी कि क्यों उसने बेर खाने की इच्छा की। आज मेरी बेटी मौत के मुँह में जा रही है । भगवान मुझे मौत क्यों नहीं देता। वह मन में रो रही थी लेकिन वह लड़की से कह रही थी, ‘‘बेटी! कितने दिन हुए नानी के घर तू नहीं गई। वह तुझे याद कर रही है। तू आज अपने पिता के साथ नानी के घर जाएगी। दो दिन रहकर वापस आ जाना।’’
ननिहाल जाने की बात सुनकर बेटी को खुशी हुई। उसके लिए मामा का घर स्वर्ग से कुछ कम नहीं था। वहाँ की हर चीज़ उसे पसंद थी। वहाँ के फूल सुन्दर और फल रसीले थे। नानी के घर जाने की ख़बर सुनकर वह खुशी से नए कपड़े पहन कर तैयार हो गई थी। बूढ़ा उसे लेकर जंगल और नाले पार करता हुआ उस तालाब के किनारे पहुँचा और बेटी को तालाब के किनारे बैठा कर बोला, ‘‘बेटी तू यहाँ बैठी रह। मैं अभी आया।’’ बूढ़ा चला गया लेकिन वापस नहीं आया।
उधर बेटी को एक बेहद खूबसूरत कमल का फूल नज़र आया। वह सोचने लगी कि इतना खूबसूरत कमल तालाब के बिल्कुल किनारे खिला है लेकिन उसे अभी तक किसी ने हाथ नहीं लगाया! हो सकता है किसी की नज़र उस पर न पड़ी हो। बूढे की बेटी धीरे से पानी के अंदर गई। कमल के फूल की तरफ हाथ बढ़ाते ही कमल थोड़ा आगे खिसक गया। लड़की डर कर अपने पिता को पुकारने लगी। घुटने पानी हुआ है बाबा,कमल खिसकता जाता है वह फिर आगे बढ़ने लगी। कमल फिर से खिसक गया। लड़की चीख़ कर अपने पिता को पुकारने लगी। छाती पानी हुआ है बाबा,कमल खिसकता जाता है
पिता वहाँ होता तो जवाब देता। उसे डर लग रहा था वह सोच रही थी कि वापस चली जाए। उसी वक़्त बड़ी-बड़ी लाल आँखों वाला मगरमच्छ मुँह खोले पानी की सतह पर दिखाई दिया। बूढ़े की बेटी मगरमच्छ को सामने देखकर घबरा गई और चीख़ने लगी लेकिन उसकी चीख़ जंगल में गूंज कर रह गई पर उसका पिता वापस नहीं आया। मगरमच्छ उसको अपने बड़े-बड़े पंजों में पकड़ कर तालाब के दूसरे किनारे एक गुफा के अंदर ले गया और वहाँ लड़की को छोड़कर वापस आ गया।
लड़की की मासूमियत और सुन्दरता को देखकर उसे खाने का इरादा इस वक़्त उसने छोड़ दिया। राहगीर जो तालाब में नहाने या पानी पीने आते थे, उन्हें वह पेट भरकर खाता और उस आदमी के पास खाने का जो सामान होता उसे लाकर इस लड़की को देता। लड़की इस गुफा में बंद रहती। पर मगरमच्छ के डर से वह कुछ बोलती नहीं थी।
इस तरह दिन गुज़रते गए। चारों तरफ इस तालाब का मगरमच्छ आदमखोर के नाम से मशहूर हो गया था। डर के मारे कोई राहगीर इस तालाब की तरफ़ नहीं आता था। मगरमच्छ भूख से बेहाल होने लगा। उसने तालाब की बड़ी-बड़ी मच्छलियों को खाकर ख़त्म कर दिया। अब वह भूख के मारे मरने लगा। जंगल की गाय-बकरी भेड़ भी वह भूख के कारण खा गया। अब उसके डर से वहाँ कोई जानवर भी पानी पीने नहीं आता था। जब उसे ज़ोर की भूख सताने लगी तो वह बूढ़े की बेटी के क़रीब आकर उसे अपनी लाल और ललचाई आँखों से घूरने लगा। बूढ़े की बेटी समझ गई कि अब उसकी बारी थी। लेकिन मगरमच्छ ने उसे उस दिन नहीं खाया। सोचने लगा कि अब उसके दाँतों में धार नहीं थी। उन्हें लुहार से तेज़ कराने के बाद उस लड़की को खाएगा। यह सोचकर वह लुहार के पास चला गया।
इधर बूढ़े की बेटी अपनी जान बचाने की तरकीब सोचने लगी। गुफा में जितने सोने-चाँदी के ज़ेवरात मगरमच्छ ने लाकर रखे थे। उसने सबको इकट्ठा किया और एक टोकरी में रखकर सूखे पत्ते और छोटी-छोटी लकड़ियों से उसे ढँक लिया और अपने शरीर पर कीचड़ का लेप कर अपनी सूरत एक अंधी बुढ़िया जैसी बना ली और टोकरी कमर पर लादकर लाठी टेकते-टेकते जाने लगी। जैसे ही गुफा से बाहर निकली उसी वक़्त मगरमच्छ आ गया और दहाड़ कर पूछने लगा।‘‘तू कौन है?’’ बूढ़े की बेटी डर से काँपने लगी लेकिन बाद में ख़ुद को संभालते हुए कहने लगी । मैं अँधी बूढ़ी हूँ हड्डियो की लड़ी हूँ ‘मेरे बदन में क्या है जो तू खाएगा? तू अपनी गुफा को जा। वहाँ तेरे लिए एक तंदरूस्त लड़की मौजूद है। उसकी हड्डियाँ चबाने में तुझे मज़ा आएगा।’’
मगरमच्छ उसे पहचान न सका और वह तेज़ी से गुफा के अंदर चला गया। बूढ़े की बेटी उससे छुटकारा मिलते ही घबरा कर दौड़ने लगी और घने जंगल में गुम हो गई। वह सोच रही थी कि जिस माँ-पिता ने उसे धोखा देकर मगरमच्छ के हवाले कर दिया। वह उनके पास नहीं जाएगी। वह यही कुछ सोचते हुए घने जंगल में चली जा रही थी कि उसे शेर की गरज सुनाई दी। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वह डर के मारे इधर-उधर छुपने की जगह ढूंढने लगी। इतनी देर में एक बड़ा शेर उसके सामने आ गया। डर के मारे वह सामने एक बड़े बरगद के पेड़ के तने से चिपट गई और रो-रो कर मजबूरन पेड़ से विनती करने लगी।‘ ‘ऐ पेड़ तू फट जा मैं तुझमें समा जाऊँ और तू बंद हो जा।’’ यह सुनते ही पेड़ सचमुच फट गया और वह उसके अंदर चली गई और पेड़ बंद हो गया।
एक दिन एक राजकुमार शिकार करने के लिए उसी जंगल में आया। वह दातुन के लिए एक डाली काटने लगा कि उसके कानों में ये आवाज़ आई । राजकुमार धीरे काट कहीं मेरी आँख फूट न जाए, मेरी नाक काट न जाए, मेरा हाथ टूट न जाए | यह सुरीली आवाज़ सनकर राजकुमार को हैरत हो गया । और वह दातुन लिए बिना राजमहल वापिस चला आया। वह रात भर उसी जादुई पेड़ के बारे में सोचता रहा। राजमहल में राजकुमार के विवाह की तैयारियाँ हो रही थीं। ज्योतिषी और पुरोहित राजकुमार को समझा रहे थे लेकिन राजकुमार की बस एक ही ज़िद थी कि वह उसी पेड़ से विवाह करेगा। अगर उसका विवाह उस पेड़ से नहीं हुआ तो वह अपनी जान दे देगा। राजकुमार राजा की इकलौती संतान था। उसकी नज़र में विवाह की अहमियत बेटे की ज़िंदगी से कम ही थी। इसलिए राजकुमार की इच्छा पूरी की गई। उसी पेड़ के साथ उसका विवाह की रस्म पूरी की गई।
राजकुमार ने उस पेड़ को वहाँ से उखाड़कर अपने महल के पास बाग़ में लगवा लिया। बूढ़े की बेटी रात गए पेड़ से निकलती और महल के अंदर जाकर सब काम पूरे करती और सुबह होते ही वापस पेड़ के अंदर चली जाती। एक दिन राजकुमार ने छुपकर बूढ़े की बेटी के ये सब काम देखे। दूसरे दिन जब बूढ़े की बेटी पेड़ से निकल कर महल के अंदर गई तो राजकुमार ने उस पेड़ को आग लगाकर भस्म कर दिया। बूढ़े की बेटी दौड़ती हुई आई और बोली,‘‘आह। तुमने यह क्या किया ?’’
इस पर राजकुमार ने कहा, ‘‘इतना बड़ा महल है तुम इसमें रह सकती हो। इस खूबसूरत बाग़ में घूम सकती हो। बेवजह इस पेड़ के अंधेरे में क्यों सड़ती रहती हो। और फिर मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ मैंने तुम्हें अपनी रानी बना लिया है। मैं तुम्हारे बिना जी न सकूंगा।!’’ लड़की तो केवल प्रेम की भूखी थी। लड़की को लगा कि जैसे सारे संसार की खुशी उसे मिल गई हो। उस दिन के बाद दोनों राजमहल में हँसी खुशी रहने लगे।
Post Comment
कोई टिप्पणी नहीं
Do not publish spam comments