स्त्री की चंचलता -शिक्षाप्रद हिंदी कहानी
स्त्री की चंचलता

एक गाँव में एक पंडित जी और उनकी पत्नी बड़े प्रेम से रहते थे । किन्तु पंडिताइन का व्यवहार पंडित जी के कुटुम्बियों से अच्छा़ नहीं था । परिवार में कलह रहता था । प्रतिदिन के कलह से मुक्ति पाने के लिये पंडित जी ने मां-बाप और भाई-बहिन का साथ छो़ड़कर पत्नी को लेकर दूर देश में जाकर अकेले घर बसाकर रहने का निश्चय किया ।
यात्रा बहुत लंबी थी । जंगल में पहुँचने पर पंडिताइन को बहुत प्यास लगी। पंडित जी पानी लेने गये । पानी दूर था इसलिए पंडित जी को देर लग गई । पानी लेकर वापिस आये तो पंडिताइन को मरी पाया | पंडित जी बहुत व्याकुल होकर भगवान से प्रार्थना करने लगा । उसी समय आकाशवाणी हुई कि- "हे पंडित ! यदि तू अपने प्राणों का आधा भाग इसे देना स्वीकार करे तो पंडिताइन जीवित हो जायगी ।" पंडित जी ने यह स्वीकार कर लिया ।पंडिताइन फिर जीवित हो गई । दोनों ने यात्रा शुरु कर दी ।
वहाँ से बहुत दूर एक नगर था । नगर के चौराहे पर पहुँचकर पंडित जी ने कहा - "प्रिये ! तुम यहीं रुको , मैं अभी भोजन लेकर आता हूँ ।"पंडित जी के जाने के बादपंडिताइन अकेली रह गई । उसी समय चौराहे के पास कूएं पर एक लंगड़ा, किन्तु सुन्दर जवान रहट चला रहा था । पंडिताइन उससे हँसकर बोली । वह भी हँसकर बोला । दोनों एक दूसरे को प्नेम करने लगे । दोनों ने जीवन भर एक साथ रहने का प्रण कर लिया ।
पंडित जी जब भोजन लेकर नगर से लौटे तो पंडिताइन ने कहा- "यह लँगड़ा व्यक्ति भी भूखा है, इसे भी अपने हिस्से में से कुछ भोजन दे दो ।" जब वहां से आगे प्रस्थान करने लगे तो पंडिताइन ने पंडित जी से अनुरोध किया कि- "इस लँगड़े व्यक्ति को भी साथ ले चलो , रास्ता अच्छा़ कट जायगा । तुम जब कहीं जाते हो तो मैं अकेली रह जाती हूँ । बात करने को भी कोई नहीं होता । इसके साथ रहने से कोई बात करने वाला तो रहेगा ।"
पंडित जी ने कहा- "हमें अपना भार उठाना ही कठिन हो रहा है, इस लँगड़े का भार कैसे उठायेंगे ?"
पंडिताइन ने कहा- "हम इसे पिटारी में रख लेंगे |"पंडित जी को पत्नी की बात माननी पड़ी । कुछ़ दूर जाकर पंडिताइन और लँगडे़ ने मिलकर पंडित जी को धोखे से कूएँ में धकेल दिया । उसे मरा समझ कर वे दोनों आगे बढ़े।
नगर की सीमा पर राज्य-कर वसूल करने की चौकी थी । राजपुरुषों ने पंडिताइन की पिटारी को जबर्दस्ती उसके हाथ से छी़न कर खोला तो उस में वह लँगड़ा छिपा था । यह बात राज-दरबार तक पहुँची । राजा के पूछ़ने पर पंडिताइन ने कहा - "यह मेरा पति है । अपने बन्धु-बान्धवों से परेशान होकर हमने देस छो़ड़ दिया है ।" राजा ने उसे अपने देश में बसने की आज्ञा दे दी ।
कुछ़ दिन बाद, किसी साधु के हाथों कूएँ से निकाले जाने के उपरान्त पंडित जी भी उसी राज्य में पहुँच गया ।पंडिताइन ने जब उसे वहाँ देखा तो राजा से कहा कि यह मेरे पति का पुराना वैरी है, इसे यहाँ से निकाल दिया जाये, या मरवा दिया जाये । राजा ने उसके वध की आज्ञा दे दी ।
पंडित जी ने आज्ञा सुनकर कहा- "देव ! इस स्त्री ने मेरा कुछ लिया हुआ है । वह मुझे दिलवा दिया जाये ।" राजा ने पंडिताइन को कहा- "देवी ! तूने इसका जो कुछ लिया हुआ है, सब दे दे ।"पंडिताइन बोली- "मैंने कुछ भी नहीं लिया ।"पंडित जी ने याद दिलाया कि - "तूने मेरे प्राणों का आधा भाग लिया हुआ है । सभी देवता इसके साक्षी हैं ।"पंडिताइन ने देवताओं के भय से वह भाग वापिस करने का वचन दे दिया । किन्तु वचन देने के साथ ही वह मर गई ।पंडित जी ने सारा वृत्तान्त राजा को सुना दिया ।
Post Comment
कोई टिप्पणी नहीं
Do not publish spam comments